Tuesday, November 15, 2016

IDEAL ECONOMY


Ideal Economy
According to me the economic constitution of India and, for the matter of that, the world should be such that no one under should suffer from want of food and clothing. In other words, everybody should be able to get sufficient work to enable him to make the two ends meet.
And this ideal can universally realized only if the means of production of the elementary necessaries of life remain in the control of the masses. These should be freely available to all as God’s air and water are or ought to be; they should not be made vehicle of traffic for the exploitation of others. This monopolization by any country, nation or group of persons would be unjust. The neglect of this simple principle is the cause of destitution that we witness today not only in this unhappy land but other parts of the world too.
- M.K. Gandhi, (Young India, 15-11-1928, p. 381) ---------------------------------------------
आदर्श अर्थशास्त्र
माझ्या मते भारताची, आणि भारताचीच का सर्व जगाची आर्थिक संघटना अशी असली पाहिजे की कोणालाही अन्नवस्त्राची अडचण जाणवू नये. वेगळ्या शब्दात, प्रत्येक व्यक्तीला आपल्या जीवननिर्वाहाकरिता पुरेसे काम मिळाले पाहिजे.
या आदर्शाची प्राप्ती तेव्हाच होऊ शकेल जेव्हा जीवनाच्या मुलभूत गरजांची उत्पादन साधने सर्वसामान्य जनतेच्या ताब्यात असतील. ज्याप्रमाणे ईश्वराने दिलेल्या हवा आणि पाणी या गोष्टी लोकांना उपलब्ध असतात, त्याचप्रमाणे ही साधने लोकांना उपलब्ध असली पाहिजेत. यांना इतरांचे शोषण करण्याचे अवैध साधन बनविण्यात येऊ नये. कोणत्याही देशाचा वा राष्ट्रसमूहांचा वा व्यक्तींचा यांच्यावर एकाधिकार असणे अनुचित आहे. या साध्या-सरळ सिद्धांताची अवहेलना हे आपल्याच देशातील नाही तर सर्व जगातील दारिद्र्याचे कारण आहे.
- मो.क. गांधी (यंग इंडिया, १५-११-१९२८, पृ. ३८१) ---------------------------------------------
आदर्श अर्थशास्त्र
मेरे विचार में भारत, और भारत ही क्यों सारी दुनिया, का आर्थिक गठन ऐसा होना चाहिए कि उसमें किसी को रोटी-कपड़े की तंगी न रहे. दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन-निर्वाह के लिए पर्याप्त काम उपलब्ध होना चाहिए.
यह आदर्श सर्वत्र तभी प्राप्त किया जा सकता है जब जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं के उत्पादन के साधन आम जनता के नियंत्रण में हों. ये उसी प्रकार सबको मुक्त रूप से उपलब्ध होने चाहिए जिस प्रकार ईश्वर की दी हुई वायु और जल हैं अथवा होने चाहिए; इन्हें दूसरों के शोषण का अवैध साधन नहीं बनाया जाना चाहिए. किसी भी देश, राष्ट्र अथवा व्यक्ति-समूह द्वारा इन पर एकाधिकार करना अनुचित है. इस सीधे-सादे सिद्धांत की अवहेलना आज केवल इसी दुखी देश के नहीं बल्कि दुनिया के अन्य भागों की दरिद्रता का भी कारण है.
- मो.क. गांधी (यंग इंडिया, १५-११-१९२८, पृ. ३८१)

No comments: